Friday, September 24, 2010

तुम्हारी आँखें मुझे प्रिय हैं
















क्या मैने तुम्हें कभी ये बताया
कि तुम्हारी आँखें मुझे प्रिय हैं?
बासमती चावल और गोबर की बनी
ये स्वच्छ आँखें मुझे वैसे ही बहा ले जाती हैं
जैसे की गंगा बूढ़ी औरतों के दीये

ये तुम्हारी आँखें ही हैं
जो पिघलाती है सूरज को समन्दर में
और वो उढ़ेल जाता है
अपना लाल स्याह हर तरफ-
जिसे देखना तुम्हें बहुत भाता है,
देखती ही रहती तुम ये नज़ारा देर तक
अपनी ही करायी इन आँखों से।



No comments:

Post a Comment